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Agada Tantra – Ch 1 Concepts of Agada Tantra – Clinical Toxicology – BAMS – 2nd Year (NCISM)

Agada Tantra

Agada Tantra – Chapter 1: अगद तंत्र की अवधारणाएँ (Concepts of Agada Tantra – Clinical Toxicology)

Agada Tantra Notes BAMS – 2nd Year According To New NCISM Syllabus

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परिचय (Introduction)

  • अगद तंत्र: आयुर्वेद की आठ शाखाओं में से एक, जिसे “विष तंत्र” भी कहते हैं। यह विष (visha) के प्रभाव, निदान, और उपचार पर केंद्रित है।
  • अन्य नाम: दंष्ट्रा चिकित्सा, विष वैद्यक, विष विद्या, विषापद वैरोधिक प्रशमनं, जांगुलिक।
  • महत्व: मूलतः “विष चिकित्सा” पर आधारित। प्राचीन काल में नैदानिक (Clinical) रूप में प्रचलित था (उदा. सर्पदंश का तुरंत इलाज), वर्तमान में सैद्धांतिक विषय।

अगद तंत्र की व्युत्पत्ति (Derivation of Agada Tantra)

  • अगद तंत्र = अगद + तंत्र
    • अगद: “गद्” धातु (रोग/विष) + “अ” उपसर्ग = “विषहर औषधि” या “रोग नाशक”।
    • तंत्र: “त्रायते शरीरमनेनेति तन्त्रम्” = शरीर की रक्षा करने वाला विज्ञान।
  • पर्यायवाची (अमरकोष): भेषजं, ओषधम्, भैषज्यम्, अगदः, जायुः।
  • अर्थ:
    • “नास्ति गदो यस्य” = रोग रहित करना।
    • “नास्ति गदो यस्मात्” = विष नाश का विज्ञान।

अगद तंत्र की परिभाषाएँ (Definitions of Agada Tantra)

  • सुश्रुत: “अगदतन्त्र नाम सर्प कीट लूता मूषकादि दष्ट विषव्यंजनार्थ विविध विष संयोगोपशमनार्थ च।” (सु. सू. 1/16)
    • अर्थ: सर्प, कीट, मकड़ी (लूता), चूहा आदि के दंश और विष संयोग से उत्पन्न लक्षणों का शमन।
  • चरक: “विषगर वैरोधिक प्रशमनम्”
    • विष: जहर।
    • गर: विषैला मिश्रण।
    • वैरोधिक: शरीर में बेचैनी उत्पन्न करने वाला।
    • अर्थ: विष और उसके प्रभावों का उपचार।
  • वाग्भट्ट: “दंष्ट्रा चिकित्सा”
    • अर्थ: दंश से उत्पन्न विष का उपचार।

अगद तंत्र संबंधी ग्रंथ

क्रम ग्रंथ अध्याय स्थान विवरण
1 चरक संहिता 23 चिकित्सा स्थान विष लक्षण और उपचार
2 सुश्रुत संहिता 1-8 कल्प स्थान सर्पदंश, स्थावर-जंगम विष चिकित्सा
3 अष्टांग संग्रह 40-48 उत्तर तंत्र विष प्रभाव और निवारण
4 अष्टांग हृदय 35-38 उत्तर तंत्र व्यावहारिक चिकित्सा
5 काश्यप संहिता सर्व विधि विष चिकित्सा की विधियाँ

1.1 अगद तंत्र और क्लिनिकल टॉक्सिकोलॉजी (Agada Tantra and Clinical Toxicology)

  • अगद तंत्र: आयुर्वेद में “visha” का अध्ययन और चिकित्सा। इसमें प्राकृतिक विष (सर्प, पौधे) और उनके प्रभाव शामिल हैं।
    • आधार: आयुर्वेदिक सिद्धांत (त्रिदोष, सप्त धातु)।
    • उपचार: अगद, पंचकर्म, हर्बल औषधियाँ (उदा. अतिविष्टि)।
  • Clinical Toxicology: आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की शाखा जो “poison” के कारण, निदान, और प्रबंधन से संबंधित है।
    • परिभाषा: मानव में विषाक्तता का अध्ययन।
    • महत्व: ओवरडोज, रासायनिक विषाक्तता का प्रबंधन।
    • उपयोग: दवा/रसायन खतरों की पहचान, नए एंटीडोट्स का विकास।
  • समानता: दोनों का लक्ष्य विष प्रभाव से बचाव और उपचार।
  • अंतर:
    • अगद तंत्र: हर्बल और प्राकृतिक उपचार पर जोर।
    • Clinical Toxicology: वैज्ञानिक विश्लेषण, एंटीडोट्स, और कानूनी पहलू।
  • Forensic Toxicology: विष के कानूनी पहलुओं का अध्ययन (उदा. अपराध जांच)।

1.2 अगद तंत्र का क्षेत्र (Scope of Agada Tantra)

  • परिभाषा: “विष विज्ञान” (Toxicology) से संबंधित आयुर्वेदिक शाखा जो विष स्रोतों की पहचान, वर्गीकरण, और प्रबंधन पर केंद्रित है।
  • उद्देश्य:
    1. रक्षा: स्वस्थ व्यक्तियों को विष से बचाना।
    2. उपचार: विष प्रभावितों का प्रबंधन।
  • प्रमुख पहलू:
    • विषैले पदार्थ: स्थावर (धतूरा), जंगम (सर्प), खनिज (संखिया), पर्यावरणीय प्रदूषक।
    • प्रतिविष और उपचार: अगद (उदा. मधु-घृत), पंचकर्म (वमन, विरेचन)।
    • रोकथाम: सुरक्षित आहार, विष-मुक्त वातावरण।
    • अनुसंधान: नई औषधियों की खोज।
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य: जागरूकता और रोकथाम।
    • कानूनी पहलू: आपराधिक विषाक्तता की जांच।
  • पर्यावरणीय संबंध: भूमि, जल, वायु प्रदूषण से निपटना।

1.3 विष और Poison की परिभाषा, पर्यायवाची, गुण, अंतर, गति, और वर्गीकरण

परिभाषा

  • विष: “देहं प्रविश्य यद् द्रव्यं दुष्यति रसादिकान् स्वास्थ्यप्राणहरं च स्यात् तद् द्रव्यं विषमुच्यते।” (शा. सं. 4/22)
    • अर्थ: शरीर में प्रवेश कर रस आदि धातुओं को दूषित करने वाला और प्राण नाशक पदार्थ।
  • Poison: ऐसा पदार्थ जो शरीर में प्रवेश (मुख, श्वसन, त्वचा) कर नुकसान पहुँचाए (रोग, विकृति, मृत्यु)।

पर्यायवाची

  • विष: क्ष्वेड, गरल, कालकूट, हलाहल, जांगुलाम, विषाद, पावकोपम।

विष गुण (Visha Guna)

  • चरक: “लघु रूक्षमाशु विशदं व्यवायी तीक्ष्णं विकासि सूक्ष्ममुष्णमनिर्देश्यरसं दशगुणमुक्तं विषं तज्जः।” (च. चि. 23/24)
    1. लघु: हल्का, तेज प्रभाव।
    2. रूक्ष: शुष्कता, वात वृद्धि।
    3. आशु: त्वरित प्रसार।
    4. विशद: स्निग्धता सोखता है।
    5. व्यवायी: बिना पचन फैलता है।
    6. तीक्ष्ण: जलन, तीव्र क्रिया।
    7. विकासी: धातु जोड़ कमजोर।
    8. सूक्ष्म: सूक्ष्म छिद्रों में प्रवेश।
    9. उष्ण: गर्मी बढ़ाता है।
    10. अनिर्देश्य रस: स्वाद अनिश्चित।
  • सुश्रुत: “अनिर्देश्य रस” के स्थान पर “अपाकि” (न पचने वाला)।

विष, मद्य, ओज गुण में अंतर

क्रम गुण विष मद्य ओज
1 लघु लघु लघु गुरु
2 रूक्ष रूक्ष रूक्ष स्निग्ध
3 तीक्ष्ण तीक्ष्ण तीक्ष्ण मृदु
4 उष्ण उष्ण उष्ण शीत
5 सूक्ष्म सूक्ष्म सूक्ष्म बहल
6 आशु आशु आशु प्रसन्न
7 व्यवायी व्यवायी व्यवायी स्थिर
8 विकासी विकासी विकासी श्लेष्म
9 विशद विशद विशद पिच्छिल
10 रस अनिर्देश्य अम्ल मधुर

विष गति (Visha Gati)

  • चरक: “जंगमं स्यादधोभागं ऊर्ध्वभागं तु मूलजम्।” (च. चि. 23/17)
    • जंगम: अधोगामी (नीचे की ओर)।
    • स्थावर: ऊर्ध्वगामी (ऊपर की ओर)।
  • गंगाधर राय: विपरीत मत – जंगम ऊर्ध्वगामी, स्थावर अधोगामी।

वर्गीकरण

  • आयुर्वेद:
    1. अकृत्रिम (स्वाभाविक):
      • स्थावर: वनस्पति (धतूरा), खनिज (संखिया)।
      • जंगम: प्राणी (सर्प, बिच्छू)।
    2. कृत्रिम (संयोगज):
      • गर विष: मधु-घृत संयोग।
      • दूषी विष: धीरे-धीरे प्रभाव।
  • रस शास्त्र (रस तरंगिणी):
    • विष: हलाहल, कालकूट, वत्सनाभ आदि (9)।
    • उपविष: भांग, गुंजा, अहिफेन आदि (11)।
  • आधुनिक:
    • उद्देश्य: आत्मघाती (ओपियम), हत्याकारी (आर्सेनिक)।
    • लक्षण: संक्षारक (HCl), चिड़चिड़ापन (सर्प venom), न्यूरोटिक (धतूरा)।

स्थावर और जंगम विष अधिष्ठान

  • स्थावर (10):
    1. मूल (वत्सनाभ), 2. पत्र (आक), 3. फल (गुंजा), 4. पुष्प (कनेर), 5. त्वक (अर्जुन), 6. क्षीर (स्नुही), 7. सार (चंदन), 8. निर्यास (गूगल), 9. धातु (संखिया), 10. कंद (कालकूट)।
  • जंगम (16):
    1. दृष्टि (दिव्य सर्प), 2. निःश्वास (अजगर), 3. दंष्ट्रा (सर्प), 4. नख (बाघ), 5. मूत्र (विपिट), 6. पुरीष (सर्पक), 7. शुक्र (मूषक), 8. लाला (लूता), 9. आर्तव (लूता), 10. मुखसंदंश (मक्खी), 11. विशर्घित (बिच्छू), 12. तुण्ड (शूक), 13. अस्थि (सर्प कंटक), 14. पित्त (मत्स्य), 15. शूक (शतपरी), 16. शव (कीट)।

1.4 Poison, Venom और Toxin में अंतर

पहलू Poison Venom Toxin
परिभाषा हानिकारक पदार्थ प्राणियों का इंजेक्टेड विष जैविक विष
स्रोत प्राकृतिक/कृत्रिम प्राणी (सर्प) सूक्ष्मजीव/पौधे
प्रवेश मुख, त्वचा, श्वसन दंश/इंजेक्शन उत्पादन
उदाहरण आर्सेनिक, निकोटीन सर्प venom Botulinum toxin
प्रकार प्राकृतिक/संश्लेषित न्यूरोटॉक्सिन एंडोटॉक्सिन
क्रिया निष्क्रिय सक्रिय जैविक disruption
उपयोग कीटनाशक दवा (पेनकिलर) जैविक हथियार

1.5 विष के प्रशासन के मार्ग (Routes of Administration of Poison)

  • स्थानीय:
    • त्वचा: संपर्क (उदा. रसायन)।
    • आँख: कॉन्जंक्टिवा।
    • नाक: श्वसन।
  • प्रणालीगत:
    • एंटेरल:
      • मुख: धीमा (धतूरा)।
      • सबलिंगुअल: तेज।
      • रेक्टल: मध्यम।
    • पेरेंटेरल:
      • श्वसन: तेज (CO)।
      • IV: तत्काल (100% bioavailability)।
      • IM: मध्यम।
      • SC: धीमा।
      • Intradermal: सबसे धीमा।
  • प्रभाव: IV सबसे घातक, Oral सबसे धीमा।

1.6 विष का कार्य करने का तरीका (Mode of Action of Visha और Toxicokinetics)

विष गुणानुसार कर्म

  • श्लोक: “विषं हि देहं सम्प्राप्यं प्राग्दुष्यति शोणितं…” (अ. सं. उ. 40/17)
  • क्रिया:
    • रक्त दूषित → त्रिदोष असंतुलन (वात: कंपन, पित्त: जलन, कफ: श्वास कष्ट) → धातु नाश → हृदय प्रभावित → मृत्यु।
  • गुण प्रभाव:
    • रूक्ष: वात।
    • उष्ण: पित्त।
    • सूक्ष्म: रक्त।
    • आशु: तेज प्रसार।
    • तीक्ष्ण: जलन।
    • विकासी: धातु विनाश।

Toxicokinetics

  • परिभाषा: “Poison” का अवशोषण, वितरण, जैव परिवर्तन, और उत्सर्जन।
    • अवशोषण: त्वचा/मुख से रक्त में।
    • वितरण: अंगों तक।
    • जैव परिवर्तन: यकृत में परिवर्तन।
    • उत्सर्जन: मूत्र, मल, श्वास।
  • क्रिया:
    • स्थानीय: जलन (H₂SO₄)।
    • प्रणालीगत: हृदय प्रभाव (Aconite)।
    • संयुक्त: दोनों (Carbolic acid)।

1.7 विष के प्रभाव को बदलने वाले कारक (Factors Modifying the Action of Poison)

  • आयुर्वेदिक: भूख, क्रोध, गर्मी, पित्त।
  • आधुनिक:
    1. मात्रा: अधिक = घातक।
    2. रासायनिक स्थिति: शुद्ध आर्सेनिक हानिरहित, सफेद आर्सेनिक विषैला।
    3. भौतिक स्थिति: गैस तेज।
    4. मार्ग: IV > श्वसन > Oral।
    5. उम्र: बच्चे/वृद्ध संवेदनशील।
    6. स्वास्थ्य: बीमार में प्रभाव बढ़ता है।
    7. लिंग: महिलाएँ lipophilic से प्रभावित।
    8. सहनशीलता: नियमित उपयोग से कम प्रभाव।
    9. पेट की स्थिति: खाली पेट पर तेज प्रभाव।

1.8 विष वर्धक भाव और विष संकट (Visha Vardhaka Bhava और Visha Sankata)

विष वर्धक भाव

  • वाग्भट्ट (अ. ह. उ. 35/61-63):
    • शारीरिक: भूख, प्यास, गर्मी, कमजोरी, पित्त-वात वृद्धि।
    • मानसिक: क्रोध, शोक, भय, थकान।
    • बाहरी: तिल की गंध, पूर्वी हवा, कमल सुगंध।
  • प्रभाव: विष की तीव्रता बढ़ती है।

विष संकट

  • कारण:
    • पित्त प्रकृति, ग्रीष्म, कटु रस, रक्त दूषण।
  • स्थिति: आपातकाल, 99% मृत्यु संभावना (वाग्भट्ट)।
  • उदाहरण: सर्पदंश + गर्मी।

1.9 विष वेग, वेगांतर और स्थावर विष वेगानुसार लक्षण व चिकित्सा

विष वेग (Vishavega)

  • परिभाषा: विष का सप्त धातुओं में संचरण।
  • श्लोक: “सप्त धातुषु या सप्त कला संन्यस्कृता…” (सु. क. 4/40)
  • प्रकार:
    • पशु: 4 वेग (पीड़ा → मृत्यु)।
    • पक्षी: 3 वेग (चिंता → मृत्यु)।
    • मानव: 7-8 वेग।

वेगांतर (Vegantara)

  • परिभाषा: एक धातु से दूसरी में समय।
  • श्लोक: “वेगान्तरेण तु कला…” (सु. क. 4/41)
  • प्रभाव: वायु से संचालित।

स्थावर विष वेगानुसार लक्षण और चिकित्सा

वेग लक्षण चिकित्सा
प्रथम जीभ काली, प्यास, वमन शीतल जल, अगद पान
द्वितीय कंपन, दाह, हृदय पीड़ा वमन, विरेचन
तृतीय तालु शोष, नेत्र शोफ नस्य, अंजन
चतुर्थ हिचकी, कास, आंत्र पीड़ा स्नेह युक्त अगद
पंचम कफ स्राव, पर्व भेद मधु-घृत क्वाथ
षष्ठ बुद्धि नाश, अतिसार अवपीडन नस्य
सप्तम स्कंध भंग, श्वासावरोध रक्तमोक्षण, काकपद चिह्न मांस

1.10 विष पीता और विष मुक्त लक्षण (Visha Peeta और Vishamukta Lakshana)

विष पीता लक्षण

  • श्लोक: “संदर्भ गृहधूमाभं पुरीषं योऽतिसार्यते…” (सु. क. 3/35-36)
  • लक्षण: काला मल, फेन वमन, अतिसार, गर्म अश्रु, शिथिलता।

विष मुक्त लक्षण

  • श्लोक: “प्रसन्नं चेन्द्रियं मुक्तं…” (सु. क. 6/32)
  • लक्षण: दोष सामान्य, भूख, स्वस्थ त्वचा, मानसिक शांति।
  • सावधानी: विरुद्ध आहार, क्रोध, परिश्रम से बचें।

उपद्रव

  • चरक: नीली त्वचा, दाँत ढीले।
  • सुश्रुत: सफेद जीभ, स्वर भंग।

शंका विष

  • लक्षण: बुखार, सूजन, अतिसार (मानसिक भय से)।
  • चिकित्सा: सांत्वना, मधु-गंधक पान।
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